साडी, बोझ या शौक! by Meghna T
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Saree या Sari! एक पाँच मीटर से लेकर नौ मीटर तक का बिना सिला हुआ कपड़ा। जिसे दबाव में पहना जाए तो बोझ और मर्ज़ी या शौक़ से पहना जाए तो ख़ूबसूरती का उच्चतम स्तर और विश्वास से भरी नारी का रूप निकल कर आता है। साड़ी के बारे में तो आगे बोहत सी बातें अब होती ही रहेंगी पर आज अपने पहले Blog में इसी दबाव और शौक़ के बीच के अंतर की बात करते हैं।
एक लड़की जब अपनी शादी के बाद पहली बार अपने ससुराल में आती है तो अमुँवन तौर पर वो साड़ी पहनने का उसका पहला मौक़ा होता है, हालाँकि अब बदलते समय के साथ कई जगह ये साड़ी पहनने वाली परम्परा नहीं रही पर फिर भी शुरुआती सालों में आज भी ज़्यादातर घरों में इसी का चलन है। अब सवाल ये आता है कि एक तो नया घर, नया परिवार, नया पहनावा और ऊपर से दिन रात साड़ी पहने रहने का दबाव महिलाओं के दिमाग़ में साड़ी यानी बोझ की भावना को जन्म देता है, इस तरह साड़ी पहनकर ना तो वो अपने आप को खूबसूरत मेह्सूस करतीं हैं और ना ही उनमे अपने प्रति विश्वास (confidence) ही महसूस होता है, जिसके कारण मौक़ा मिलते ही महिलाएँ सबसे पहले साड़ी से पीछा छुड़ाना चाहती है। ये कहीं ना कहीं मैंने भी अपनी शादी के शुरुआती सालों में मह्सूस किया है और आपमें से कइयों ने मेह्सूस किया होगा।
अब बात करते हैं इसके दूसरे पहलू की, ये हम सभी जानते हैं कि साड़ी एक ऐसा एकमात्र परिधान है जो कि हर उम्र और हर आकार की महिला पर बेहद ख़ूबसूरती के साथ फबता है, इसीलिए हम महिलाएँ किसी भी special occasion पर साड़ी पहन्ना ही पसंद करतीं हैं। इसी बात को समझते हुए जब अपनी मनमर्ज़ी से, अपनी पसंद से और अपने तरीक़े से साड़ी को पहनते रहते हैं, और ऐसा करते करते साड़ी पहनने में परिपक्व हो जाते हैं तो वोही बोझ शौक़ और पसंद में बदल जाता है, और हम saree styling को enjoy करने लगते हैं कयोंकि हमें पता है कि हम साड़ी में सबसे ज़्यादा खूबसूरत लग रहे होते हैं, और यही बात हमारे अंदर confidence को कूट कूट कर भर देती है।
So the idea is to let’s start enjoying it rather taking it as a pressure, it is actually a beautiful experience!
अगर आपका इस विषय पर कोई एक्सपीरियंस हो तो ज़रूर लिख भेजें!
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